करोड़ों की जॉब छोड़ी, अब खेती पर फोकस; उज्जैन में IIT पासआउट कपल अर्पित और साक्षी की रोचक कहानी

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मध्य प्रदेश के उज्जैन में एक युवा कपल अपनी अनोखी पहल से चर्चा का विषय बना हुआ है। यह हैं अर्पित और पत्नी साक्षी माहेश्वरी। दोनों ने आईटी सेक्टर में करोड़ों की नौकरी छोड़कर खेती-बाड़ी का रास्ता चुना। आज दोनों उज्जैन में डेढ़ एकड़ जमीन खरीदकर पर्मा कल्चर फार्मिंग कर रहे हैं। यह दोनों फल, सब्जियां, दालें और अनाज उगा रहे हैं। दोनों ने 75 प्रकार के पौधे लगाए हैं। इनमें आधे फलदार हैं। इसमें केला, पपीता, अमरूद, सीताफल, अनार, संतरा, करौंदा, पालसा, गूंदा और शहतूत हैं। आईआईटी गोल्ड मेडलिस्ट यह कपल पिछले पांच साल से बड़नगर में रह रहा है।

ऐसे हुई दोनों की मुलाकात
राजस्थान के जोधपुर में रहने वाले अर्पित माहेश्वरी ने बताते हैं कि उन्होंने आईआईटी मुंबई से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है। प्री एग्जाम में ऑल इंडिया में सेकंड रैंक थी। मुंबई में फिजिक्स ओलंपियाड 2007 के दौरान साक्षी से मुलाकात हुई थी। इस ओलंपियाड में दोनों को गोल्ड मेडल मिला था। साक्षी ने आईआईटी दिल्ली से ग्रेजुएशन किया है। उन्होंने बताया कि साल 2013 में हमारी शादी हुई। दोनों ने बेंगलुरु में जॉब की और फिर अमेरिका चले गए। 2016 में दक्षिण अमेरिका की यात्रा पर गए थे। इसी दौरान दुनिया के सबसे खूबसूरत जंगलों, द्वीपों और पहाड़ों पर देखा कि विकास और आधुनिकीकरण के नाम पर प्रकृति को समाप्त किया जा रहा है। लाखों पेड़ों की कटाई कर सीमेंट-कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं। ज्यादा उपज के चक्कर में बेतहाशा पेस्टिसाइड्स का यूज किया जा रहा है। हमें लगा कि ऐसा ही चलता रहा, तो आने वाले समय में प्रकृति खतरे में पड़ जाएगी।

यहां से आया बदलाव
अर्पित बताते हैं कि इस सोच ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया। उसी समय तय कर लिया कि बाकी जीवन प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने के बेहतर तरीके की तलाश में बिताना है। हम समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करेंगे और कैसे होगा। लेकिन इतना तय हो गया था कि कुछ अलग करने की जरूरत है। करोड़ों के पैकेज को छोड़कर जहां पैसे और स्टेटस से ज्यादा जरूरी रहेगा हमारा स्वास्थ्य और खुशी। इसके बाद हमने नौकरी छोड़कर प्रकृति से जुड़ने के लिए स्थाई खेती करने का फैसला कर लिया। वहां से लौटे तो उज्जैन जिले के बड़नगर कस्बे में डेढ़ एकड़ जमीन खरीदकर खेती शुरू कर दी।

पांच साल पहले खेत में कदम तक नहीं रखा था
आगे की जानकारी देते हुए अर्पित और साक्षी बताते हैं कि अभी हम स्थाई खेती (पर्मा कल्चर) का मॉडल तैयार करने में जुटे हैं। पर्मा कल्चर कॉन्सेप्ट में हम बायो डायवर्सिटी सिस्टम के मुताबिक खेती कर रहे हैं। हमने डेढ़ एकड़ जमीन पर 75 प्रकार के पौधे लगाए हैं। इनमें आधे फलदार हैं, केला, पपीता, अमरूद, सीताफल, अनार, संतरा, करोंदा, पालसा, गूंदा, शहतूत जैसे। एक फलदार पौधे के साथ चार जंगली पौधे सपोर्ट ट्री के तौर पर लगाए हैं। यह जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। उन्होंने बताया कि हम पति-पत्नी ने पांच साल पहले तक कभी खेत में पांव तक नहीं रखा था। शुरुआत करने के लिए देश के जैविक खेतों में हमने वालंटियर के तौर पर काम किया। बेंगलुरु जैसे बड़े शहर के जीवन को छोड़कर एक कस्बे में रहना, हमारे लिए बिल्कुल नया था। उन्होंने बताया कि हम तीन घंटे की ऑनलाइन जॉब करते हैं। उससे आर्थिक जरूरतें पूरी होती हैं, बाकी समय खेती को दे रहे हैं।

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