PM ने सेंटर फॉर बौद्ध कल्चर एंड हेरिटेज की आधारशिला रखी, यहां बौद्ध परंपरा पर स्टडी होगी
बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार सुबह करीब 10:30 बजे नेपाल के लुंबिनी पहुंचे। यहां उन्होंने नेपाल में भारत की पहल पर बनाए जा रहे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर फॉर बौद्ध कल्चर एंड हेरिटेज की आधारशिला रखी। इस सेंटर में बौद्ध परंपरा पर स्टडी होगी।
इसके पहले नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देऊबा ने हैलिपैड पर पीएम मोदी का स्वागत किया। दोनों प्रधानमंत्रियों ने माया देवी मंदिर में पूजा-अर्चना की। जिसके बाद उन्होंने पुष्कर्णी तलाब की परिक्रमा की। इसके साथ-साथ उन्होंने पवित्र बोधि वृक्ष की पूजा भी की। अशोक स्तंभ पर दीप जलाए
विदेश मंत्रालय (MEA) ने बताया कि पीएम मोदी और नेपाल के पीएम शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी डॉ आरजू राणा देउबा ने माया देवी मंदिर परिसर के अंदर मार्कर स्टोन पर श्रद्धांजलि अर्पित की, जो भगवान बुद्ध के सटीक जन्म स्थान को इंगित करता है। वे बौद्ध रीति-रिवाजों के अनुसार आयोजित पूजा में शामिल हुए।इसके बाद मोदी और देउबा ने मंदिर से सटे अशोक स्तंभ के पास दीप जलाए। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, 249 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया स्तंभ, लुंबिनी के भगवान बुद्ध का जन्मस्थान होने का पहला पुरालेख है। 2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी यहां आए थे तो उन्होंने नेपाल को उपहार में बोधि वृक्ष दिया था। पीएम ने 8 साल बाद उसी वृक्ष को आज जल दिया।
यहां प्रधानमंत्री मोदी 2566वें बुद्ध जयंती समारोह में भी शामिल होंगे और बौद्ध विद्वानों-भिक्षुओं सहित नेपाल और भारत के लोगों को संबोधित करेंगे। PM की इस यात्रा का मकसद नेपाल और भारत के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपरा के साथ सदियों पुराने धार्मिक संबंधों को बढ़ावा देना है।
सांस्कृतिक-शैक्षिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा संभव
दोपहर में भारत और नेपाल के प्रधानमंत्रियों के बीच एक द्विपक्षीय बैठक होनी है। इस बैठक में दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हो सकती है। प्रधानमंत्री मोदी के सम्मान में एक भोज भी रखा गया है, जिसमें नेपाली PM उनकी कैबिनेट के साथ मौजूद रहेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा लुम्बिनी में मुलाकात करेंगे। इस दौरान वो दोनों देशों के बेहतर संबंध को लेकर चर्चा करेंगे। एक दूसरे के हितों के मुद्दों पर भी बातचीत होगी। बहरहाल, सवाल ये है कि मुलाकात के लिए लुम्बिनी ही क्यों, काठमांडू या कोई और शहर क्यों नहीं?