बिलकिस बानो से गैंगरेप करने वाले रिहा:11 दोषी 15 साल में ही छूटे; क्या वाकई उम्रकैद का मतलब उम्र भर की कैद नहीं?

2002 में गोधरा कांड के बाद हुए बिलकिस बानो गैंगरेप केस के सभी 11 दोषी रिहा हो गए हैं। 2008 में CBI की स्पेशल कोर्ट ने इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हालांकि, ये 2004 से ही जेल में थे। 15 अगस्त को ये सभी उम्रकैद के बजाय 15 साल की सजा पूरी होने के आधार पर गोधरा जेल से रिहा हो गए।
इन सभी को गुजरात दंगों के दौरान बचकर भागती गर्भवती बिलकिस बानो का गैंगरेप करने, उनकी तीन साल की बच्ची को पटक कर मार देने समेत परिवार के 7 लोगों की हत्या का दोषी पाया गया था।
गंभीर अपराध में उम्रकैद की सजा पाए इन दोषियों की 15 साल में रिहाई से सवाल खड़े हो रहे हैं।
सबसे पहले जानते हैं कि गुजरात के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (होम) राजकुमार ने कैदियों की रिहाई के पीछे की वजह क्या बताई…
‘11 दोषियों ने कुल 14 साल की सजा काटी। नियम के अनुसार, उम्रकैद का मतलब होता है कि कम से कम 14 साल की सजा, जिसके बाद दोषी माफी के लिए अपील कर सकता है। इसके बाद इस पर फैसला करना सरकार का काम होता है। इसके बाद एलिजिबल कैदियों को जेल सलाहकार समिति के साथ ही जिले की लीगल अथॉरिटीज की सलाह पर माफी दी जाती है। जिन पैरामीटर्स को ध्यान में रखा गया उनमें उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार शामिल हैं… इस मामले में दोषियों को इन सभी पैरामीटर्स पर विचार के बाद इसलिए भी एलिजिबल माना गया क्योंकि वे अपनी उम्रकैद का 14 साल जेल में पूरा कर चुके थे।’
CrPC की दो धाराओं का इस्तेमाल करके किया गया रिहा
CrPC की धारा 433 और 433A के तहत संबंधित राज्य सरकार किसी भी दोषी के मृत्युदंड को किसी दूसरी सजा में बदल सकती है। इसी तरह उम्रकैद को भी 14 साल की सजा पूरी होने के बाद माफ कर सकती है। इसी तरह संबंधित सरकार कठोर सजा को साधारण जेल या जुर्माने में और साधारण कैद को सिर्फ जुर्माने में भी बदल सकती है। इस आधार पर राज्य नीति बनाते हैं। उन्हें रिमिशन पॉलिसी कहते हैं।
बिलकिस बानो वाले मामले में 11 दोषियों में से एक राधेश्याम भगवानदास शाह ने सीधे गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की। अपील में कहा था कि रिमिशन पॉलिसी के तहत उसे रिहा किया जाए।
जुलाई 2019 में गुजरात हाईकोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि सजा महाराष्ट्र में सुनाई गई थी, इसलिए रिहाई की अपील भी वहीं की जानी चाहिए। दरअसल, बिलकिस बानो की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को महाराष्ट्र ट्रांसफर किया था और वहीं CBI की विशेष अदालत में इन सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दोषी भगवानदास सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में गुजरात सरकार फैसला करे, क्योंकि अपराध वहीं हुआ था। कोर्ट के निर्देश पर ही गुजरात सरकार ने रिहाई पर फैसला लेने के लिए पंचमहल के कलेक्टर सुजल मायत्रा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की।
समिति ने हाल ही में सर्वसम्मति से 11 दोषियों के रिमिशन यानी समय से पहले रिहाई के पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद गुजरात सरकार ने इन दोषियों की रिहाई पर मुहर लगा दी।