48 की उम्र में साइकोलॉजी में पीएचडी, सिंगापुर से शुरुआत कर अब कई देशों में साइकोथेरेपी से कर रही इलाज

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शरीर को छूकर बुखार मापा जा सकता है, सिर में दर्द है तो माथे पर बाम दिख सकता है, लेकिन डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसे मन के दुख किसी को नहीं दिखते। किसी को समझ नहीं आते।

जब मन का यह दुख गाढ़ा हो सुसाइड की ओर बढ़ता है तो साइकोलॉजिस्ट के बजाए बाबा बंगाली के पास इलाज के लिए ले जाया जाता है। लाख बता लो लोगों को कि डब्लुएचओ के मुताबिक, 20 में से एक इंसान डिप्रेशन से जुझता है, उन्हें यह शब्द ही अजूबा लगता है।

जब मुझे यह परेशानी समझ आई तो मैं भी हाथ में साइकोलॉजी की डिग्रियां और माथे पर जुनून का कपड़ा बांध निकल गई और क्लिनिकल हिप्नोथेरेपिस्ट के अलावा लाइफ कोच कहलाई।

तय नहीं था कि साइकोलॉजी पढ़नी है
गुजरात में पली-बढ़ी रीरी त्रिवेदी वुमन भास्कर से खास बातचीत में कहती हैं, ‘मैंने बचपन से तय नहीं किया था कि मुझे साइकोलॉजी की फील्ड में ही काम करना है। दरअसल, सच बताऊं तो बचपन से कुछ भी तय नहीं किया था कि मुझे क्या करना है।

जबकि पापा प्रोफेसर, मां चार्टेड अकांटेंट रहीं। छोटी बहन भी प्रोफेसर और मैं बस पढ़ाई में अच्छी थी, लेकिन कोई ड्रीम जॉब नहीं थी। मैंने एलएलबी पढ़ा, एमबीए किया, फिर कॉर्पोरेट सेक्टर में काम किया।

कॉर्पोरेट का स्ट्रेस योग से निकला
हसबैंड के साथ मुंबई, जापान, सिंगापुर और चीन में रही। हम दोनों कॉर्पोरेट जॉब कर रहे थे। अब तक दो बच्चे भी हो गई। कॉर्पोरेट में काम करते-करते स्ट्रेस बढ़ने लगा और फिर दोनों हसबैंड-वाइफ ने सोचा कि चलो अब योग करते हैं।

2008 में योग शिक्षक और थेरेपिस्ट का सर्टिफिकेट लिया। इस वक्त मैं सिंगापुर में थी और यहां स्कूल में योग सिखाती थी। धीरे-धीरे योग फिलॉसफी की तरफ ध्यान गया तो लगा कि यह सिर्फ योग नहीं बल्कि दिमाग से जुड़ी चीजें भी हैं।

मैंने पास्ट लाइफ रिग्रेशन को जानने के लिए खूब किताबें पढ़ीं। इसके लिए सिंगापुर में डिप्लोमा इन पास्ट लाइफ रिग्रेशन किया। उसके लिए हिप्नोथेरेपी भी सीखा। सिंगापुर में ही योग थेरेपी के साथ-साथ हिप्नोथेरेपी और पिछले जन्म पर काम करने लगी।

विदेश में शुरू किया काम देश में फैला
इंडिया आने पर क्लिनिकल हिप्नोथेरेपी सीखा, चाइल्डहुड ट्रॉमा पर काम करना सीखा। इसी के साथ मेंटल हेल्थ पर काम चालू किया। अहमदाबाद में ‘वेलनेस स्पेस’ का एक सेंटर खोला और साइकोथेरेपी का काम शुरू हुआ।

दरअसल 2010 में ही ‘वेलनेस स्पेस’ कंपनी सिंगापुर में खोल ली थी। बाद में इंडिया में काम बढ़ाया।

20 साल कॉर्पोरेट में काम करने के बाद हसबैंड भी मेरे साथ जुड़ गए। हम दोनों ने ट्रेनिंग करनी शुरू की। सिंगापुर, दुबई, इंडिया, न्यूजीलैंड में हमने अपने टेक्निक बताकर थेरेपिस्ट को प्रशिक्षित किया।

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